ज्ञान प्रकाश /नई दिल्ली अनाज मंडी की फैक्ट्री में रविवार को डेंजर्स स्मोक फायर डैथ मिस्ट्रीके काल का ग्रास बन चुके 43 निरीह लोगों की निर्मम मृत्यु के पीछे फोरेंसिक विशेषज्ञों का कहना है कि 90 फीसद अग्निकांड में मृत्यु की वजह दम घुटना रहता है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक एवं प्रख्यात प्लूमनरी एंड रेस्पिरेटरी यूनिट के अध्यक्ष डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि शरीर में आग लगने से कई अंग इसकी चपेट में आ जाते हैं। ऐसे में यदि शरीर का बड़ा हिस्सा जल जाए तो मौत होने की आशंका ज्यादा रहती है। आग लगने की अवस्था में हमारे आसपास का तापमान तेजी से बढ़ता है। मनुष्य की सहन शक्ति से बाहर होने पर यह शरीर की कोशिकाओं, धमनियां अपना काम करना तेजी से बंद करने लगती है। शरीर में स्वच्छ आक्सीजन की जगह को जलाना शुरू कर देता है। इसकी वजह से त्वचा के साथ भीतरी अंग भी जलने लगते हैं। शरीर के संवेदनशील अंगों के जलने पर मौत की आंशका भी बढ़ जाती है। दरअसल आग ऑक्सीजन की मौजूदगी में ही तेज होती है और इसके बढ़ने के साथ-साथ उस जगह पर ऑक्सीजन की मात्रा कम होने लगती है। सामान्यतौर पर एक इंसान सांस लेने के दौरान 21 फीसद ऑक्सीजन, 78 फीसद नाइट्रोजन और बाकी एक फीसद दूसरी अन्य गैस ग्रहण करता है। लेकिन यदि यही ऑक्सीजन की मात्रा 6 फीसद हो जाए तो उसकी मौत होना तय है।
सामान्य धुएं से नहीं हाती सडन डेथ:
दिल्ली विविद्यालय से संबंद्ध वल्लभ भाई पटेल चेस्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक डा. राजकुमार के अनुसार दम घुटने से होने वाली मौतों का अर्थ ये नहीं है कि इंसान के शरीर में धुआं जाने से ही मौत हो। इसके कई दूसरे कारण भी हो सकते हैं। ऐसे में तुरंत मौत हो जाए ये भी जरूरी नहीं है। एक सामान्य व्यक्ति जब सांस लेता है तो इस दौरान वो शरीर में ऑक्सीजन लेकर शरीर के अंदर मौजूद कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर छोड़ता है। इस प्रक्रिया में नाइट्रोजन भी शरीर के अंदर जाती है। लेकिन सांस छोड़ने के साथ ही वह तुरंत बाहर आ जाती है। शरीर में जाने वाली ऑक्सीजन रक्त में मौजूद हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर शरीर के दूसरे हिस्सों में पहुंचती है।
ऐसे बनता है जहरीला धुआं:
बहुमंजिली इमारत हो या कारखाना, फैक्ट्री या कोई भी इमारत में आग लगने की सूरत में बड़ी मात्रा में धुआं बनता है। आग के जरिए धुआं बनने की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि आग लगने का कारण क्या है। बैग में लगने वाला मैटेरियल भी जलने पर काफी मात्रा में धुआं छोड़ता है। इसकी वजह से यहां पर फैलने वाला धुआं ज्यादा जहरीला था। इस तरह के धुएं में कार्बन डाईआक्साइड के अलावा जहरीली मीथेन भी होती है। इस धुएं का शरीर और सन तंत्र पर कई तरह से असर होता है। आग लगने की सूरत में वहां मौजूद लोगों के शरीर में ऑक्सीजन की जगह ये दोनों गैस ज्यादा मात्रा में जाती हैं। शरीर और उस जगह पर ऑक्सीजन की मात्रा धीरे-धीरे कम होने लगती है।