भारत चौहान नई दिल्ली
दिल्ली सरकार के परिवहन विभाग पर आज एक बड़ा आरोप लगते हुए स्वराज इंडिया ने कहा है की दिल्ली में परिवहन वयवस्था में भयंकर गड़बड़ी व्याप्त है दिल्ली सरकार में परमिट ट्रांसफर के नाम पर हो रहे बड़े घपले का पर्दाफ़ाश किया था। उदाहरण देते हुए पार्टी पदाधिकारियों ने एक विशेष मामले को उजागर किया था जिसमें एक मृत ऑटोचालक को ज़िंदा दिखाकर और फ़र्ज़ी कागज़ात बनाकर बिना उसके परिवार की जानकारी के किसी और के नाम परमिट हस्तांतरित कर दिया गया। धोखाधड़ी का ये सारा खेल परिवहन विभाग के एमएलओ, एमवीआई और दलालों की सांठगांठ से हुआ। मृत ऑटोचालक की माताजी शांति देवी ने स्वयं मीडिया के समक्ष आकर अपनी कहानी बताई। अपना दर्द बयां करते हुए उन्होंने बताया कि राज्य से लेकर केंद्र सरकार के हर विभाग और नेताओं तक गुहार लगाने के बाद जब न्याय नहीं मिला तो स्वराज इंडिया मजबूती से साथ खड़ा हुआ। मामले पर कहीं कोई सुनवाई ना होता देख स्वराज इंडिया ने अदालत के जरिये भ्रष्ट अधिकारियों और अन्य आरोपियों पर मुकदमा दर्ज़ करवाया।
ज्ञात हो कि कोर्ट के निर्देश के बाद 7 फ़रवरी 2018 को सरकार में परिवहन विभाग के एमएलओ श्री राजेश कुमार मीणा, एमवीआई श्री जितेंद्र और कुछ दलालों पर मुकदमा दर्ज़ किया गया। लेकिन परिवहन विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार में पुलिस और दिल्ली सरकार की मिलीभगत का इसीसे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इतने गंभीर मामले में, वो भी अदालत के निर्देश पर एफआईआर दर्ज़ होने के बाद भी अब तक कोई कार्यवाई नहीं हुई। ना ही पुलिस ने इस ग़ैर जमानती अपराध के लिए अधिकारियों को गिरफ़्तार किया और न ही दिल्ली सरकार ने भ्रष्टाचार के संगीन मसले के बाद अपने अधिकारियों को निलंबित किया है।
बुराड़ी ट्रांसपोर्ट ऑथोरिटी में अधिकारी धड़ल्ले से इस तरह के भ्रष्टाचार में लिप्त हैं जो सरकार और मंत्रालय के सीधे संरक्षण के बिना संभव नहीं है। स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय प्रवक्ता अनुपम ने प्रेस वार्ता के दौरान ऐसे ही एक और नए मामले को उजागर किया जिसमें 64 वर्षीय फ़र्ज़ी व्यक्ति के कागज़ात बनाकर उस नाम पर परमिट हस्तांतरित करवाया गया क्यूंकि 42 वर्षीय जिस व्यक्ति के नाम पर ऑटो था उसकी नए लाइसेंस बैज के लिए पात्रता नहीं थी। इस मामले में भी एमएलओ, फाइनेंसर और दलालों की मिलीभगत से फ़र्ज़ी कागज़ात तैयार किये गए क्यूंकि नियमतः 60 वर्ष से अधिक (वरिष्ठ नागरिक) को लाइसेंस बैज की बाध्यता नहीं होती। ऐसे सभी मामलों में पुलिस वेरिफिकेशन की भी ज़रूरत होती है लेकिन फ़र्ज़ी पुलिस रिपोर्ट फ़ाइल में लगाकर काम को अंजाम दे दिया जाता है।