कोरोना वैक्सीन मानव परीक्षण पर कई मुश्किलें, तो अच्छे परिणाम भी! -खट्टा मिट्ठा अनुभव से भलीभांति तरीके से रूबरू हो रहे हैं वैज्ञानिक

दुनियाभर के वैज्ञानिकों की नजर है भारतीय वैक्सीन परीक्षण के तौर तरीकों, उनके परिणामों पर -चुनौती: कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी की मौजूदगी की वजह से उन पर नहीं हो सकता ट्रायल

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ज्ञानप्रकाश नई दिल्ली, कोरोना वायरस की देसी वैक्सीन बनाने के लिए भारत बायोटेक की वैक्सीन कैंडिडेट कोवाक्सीन का राजधानी में स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के अलावा देश के 11 शहरों में पहले चरण का ह्यूमन ट्रायल चल रहा है। हालांकि, एम्स को एक अलग तरह की ही चुनौती से जूझना पड़ रहा है। ऐसी चुनौती जो वैक्सीन ट्रायल की राह तो कठिन कर रही है लेकिन कोरोना के खिलाफ जंग में राजधानीवासियों के लिए वह अच्छी खबर भी है। यह चुनौती खुद पर वैक्सीन का ट्रायल कराने के लिए आगे आए कई वॉलंटियर्स में पहले से ऐंटीबॉडी की मौजूदगी है। न सिर्फ वॉलियंटर्स बलकि टेस्टिंग यूनिट में लगे पैथलॉजिस्टों की दिलचस्पी बढ़ती ही जा रही है।
ट्रायल के लिए 3500 लोगों ने कराया है रजिस्ट्रेशन:
एम्स में कोवाक्सीन परीक्षण के प्रमुख वैज्ञानिक डा. संजय राय के अनुसार पहले चरण का ह्यूमन ट्रायल चल रहा है। इस चरण में संस्थान को 100 वॉलंटियर्स पर ट्रायल करना है। ट्रायल में हिस्सा लेने के लिए करीब 3500 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है। इनमें से 50 प्रतिशत से ज्यादा दूसरे राज्यों के हैं।
ज्यादातर वॉलंटियर्स में पहले से ही एंटीबॉडी मौजूद:
मुश्किल ये आ रही है कि दिल्ली में रहने वाले ज्यादातर वॉलंटियर्स के शरीर में पहले से ही कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी मौजूद है। इसका मतलब है कि वे ट्रायल के लिए योग्य नहीं हैं। दरअसल, ट्रायल से पहले वॉलंटियर्स की स्क्रीनिंग होती हैं और जांचा जाता है कि उनमें पहले से कोई रोग तो नहीं है। दिल्ली से बाहर के लोगों पर ट्रायल करने में यह दिक्कत है कि उन्हें मॉनिटर करने और उनमें आए किसी साइड इफेक्ट को ठीक करना एम्स के लिए कठिन होगा। अगर वॉलंटियर दिल्ली के ही होंगे तो उनकी निगरानी और उनमें आने वाले किसी साइड इफेक्ट की समस्या को दूर करने में आसानी होगी।
राहत भरी खबर:
एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि ट्रायल की राह में आई यह चुनौती दिल्ली के लिए अच्छी और राहत देने वाली खबर है। इस विरोधाभास की वजह यह है कि पहले से कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी के पाए जाने का मतलब ये है कि संबंधित शख्स वायरस के प्रति इम्यून हो चुका है। यानी अब उसे कोरोना संक्रमण का खतरा नहीं है। जिन वॉलंटियर्स के शरीर में पहले से एंटीबॉडी मौजूद है, वे पहले ही कोरोना से संक्रमित होकर उससे ठीक भी हो चुके हैं। उन्हें इसका पता भी नहीं चला है क्योंकि उनमें या तो लक्षण ही नहीं आए या फिर बहुत हल्के लक्षण रहे होंगे। बता दें कि दिल्ली में हुए सीरो सर्वे में भी यह बात सामने आई थी कि यहां की 23.5 प्रतिशत आबादी में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी पैदा हो चुकी है।
एक बड़ी आबादी को अब कोरोना का खतरा नहीं:
आईसीएमआर में वैज्ञानिक और एम्स के पूर्व डीन डा. एनके मेहरा ने कहा कि दिल्ली में कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी वाले लोगों की तादाद असल में इससे भी ज्यादा हो सकती है। यानी दिल्ली की एक बड़ी आबादी को अब कोरोना संक्रमण का खतरा ही नहीं है।

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