कोलोरेक्टल कैंसर विश्वभर में होने वाला तीसरा सबसे आम कैंसर -और कैंसर से होने वाली मौतों का चौथा सबसे प्रमुख कारण

2030 तक 22 लाख नए मामलों और 11 लाख लोगों की मृत्यु की आशंका

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, पिछले एक साल के दौरान, एक ओर कोविड-19 के बारे में नई-नई बातें सामने आ रही हैं, दूसरी ओर, स्वास्थ्य सेवाओं का पूरा ध्यान इसी ओर होने से अधिकांश घातक बीमारियों का उपचार प्रभावित हुआ है, कैंसर उन्हीं में से एक है। कैंसर विस्तर पर मौत का दूसरा प्रमुख कारण है और 2018 में अनुमानित 96 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है। 96 लाख मौतों में से सबसे अधिक 18 लाख मौतों का कारण कोलोरेक्टल कैंसर था।
बीएलके सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के सर्जिकल गैस्ट्रोएंटोरोलॉजी, बैरियाट्रिक एंड मिनिमल एक्सेस सर्जरी के वरिष्ठ निदेशक डा. दीप गोयल ने कहा, यह तीसरा सबसे आम कैंसर है और विभर में कैंसर से होने वाली मौतों का चौथा सबसे आम कारण। इस बीमारी के भविष्य में बढ़ते बोझ की भविष्यवाणी स्वास्थ्य योजनाकारों को इसकी गंभीरता के बारे में सूचना उपलब्ध कराती है और कैंसर नियंतण्रकार्वाई की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाती है। कोलोरेक्टल कैंसर, बिना किसी लक्षणों के विकसित हो सकता है, विशेषकर शुरूआती चरणों में। हालांकि, जिन्हें शुरूआती चरणों में लक्षण अनुभव होते हैं, उनमें कब्ज, दस्त, मल के रंग में बदलाव, मल में रक्त आना, मलाश्य से रक्तस्त्राव, अत्यधिक गैस बनना, पेट में ऐंठन और दर्द सम्मिलित हो सकते हैं।
यह भी:
कोलोरेक्टल कैंसर (सीआरसी), कैंसर का एक प्रकार है, जो कोलन (बड़ी आंत) या मलाश्य में शुरू होता है। ये दोनों अंग हमारे पाचन तंत्र के निचले भाग में होते हैं। मलाश्य, बड़ी आंत के अंत में होता है। आमतौर पर, सीआरसी बुजुर्गों पर आक्रमण करता है, जब वे अपने जीवन के सातवें दशक में होते हैं। हालांकि, यह किसी भी उम्र में हो सकता है।
जरूरी सलाह:
डा. गोयल के अनुसार निदान के बाद उपचार की तीव्रता, निर्धारित करती है कि किसी भी बीमारी को किस सीमा तक ठीक किया जा सकता है। ऐसी स्थितियों में, जितनी जल्दी उपचार कराया जाए उतना बेहतर है, देरी घातक हो सकती है। इसी तरह, कोलोरेक्टल कैंसर का तुरंत निदान, इसे ठीक करने का सबसे अच्छा मौका देता है। सामान्यता, नैदानिक तरीके जैसे कि कोलोनोस्कोपी और बायोप्सी सबसे सटीक हैं। सीटी/एमआरआई/पीईटी स्कैन, मल में रक्त आने का पता लगाने के लिए स्टूल टेस्ट और ट्युमर मार्कर (सीईए) भी किए जाते हैं। इसी प्रकार से, स्क्रीनिंग पद्धति में, नियोजित कोलोनोस्कोपी/सिग्मोइडोस्कोपी और एफओबीटी (फीकल ऑकल्ट ब्लड टेस्टिंग) हैं। कोलोरेक्टल कैंसर के पारंपरिक उपचार के तौर-तरीकों के अलावा, लिक्विड बायोप्सी, मिनिमल इन्वेसिव (की-होल), रोबोटिक, पर्सनलाइ•ड कीमोथेरेपी, टारगेटेड थेरेपी और जीन एडिटिंग जैसी नई तकनीकों का व्यापक रूप से इस्तेमाल हो रहा है।

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