सीसीएमटी तकनीक क्षतिग्रस्त दिल के वाल्वों को सामान्य करने में अब होगी मददगार

0
719

भारत चौहान नई दिल्ली , हृदय की बीमारियों के बढ़ने के साथ ही हार्ट फेल्योर (हार्ट अटैक) के मामले भी बढ़ रहे हैं। इस बीमारी से पीड़ित मरीजों के हृदय की कार्यक्षमता कम होने लगती है। इसलिए हृदय ठीक से काम नहीं कर पाता। वैसे तो इसके इलाज के लिए पहले से पेसमेकर व कृत्रिम हृदय जैसे उपकरण उपलब्ध है पर इन उपकरणों का इस्तेमाल सीमित मरीज ही कर पाते हैं। इसलिए ज्यादातर मरीजों के लिए इलाज का विकल्प तलाशना मुश्किल होता है। पुष्पावती सिंघानिया रिसर्च इंस्टीट्यूट (पीएसआरआई) अस्पताल के हृदय संस्थान द्वारा रविवार को यहां आयोजित सम्मेलन में हृदय शल्य चिकित्सकों ने हार्ट फेल्योर के इलाज की नवीनतम तकनीकों पर चर्चा की, जिसमें यह बात समाने आई की सीसीएम (कार्डियक कांट्रैक्टिलिटी मॉड्यूलेशन) थेरेपी (सीसीएमटी) हार्ट फेल्योर के मरीजों के इलाज के लिए एक नई उम्मीद है। यह एक अत्याधुनिक पेसमेकर है। उम्मीद है कि जल्द ही देश में भी यह सुविधा उपलब्ध होगी।
पीएसआरआइ हार्ट इंस्टीट्यूट के चेयरमैन डा. टीएस क्लेर ने कहा कि हार्ट फ्लोयर के अंतिम स्टेज की बीमारी से पीड़ित मरीजों को सीआरटी (कार्डियक रिसिंक्रोनाइजेशन थेरेपी) की जाती है। इसके तहत विशेष तरह का पेसमेकर लगाया जाता है, जिससे हृदय के पंप करने की क्षमता बढ़ जाती है लेकिन यह उन्हीं मरीजों के लिए फायदेमंद है, जिनकी ईसीजी (इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी) में बायें बंडल ब्रांच में ब्लॉकेज हो। इस तरह हार्ट फेल्योर के 30 फीसद मरीजों के इलाज में ही इस तरह का पेसमेकर असरदार साबित हो पाता है। 70 फीसद मरीजों में यह कारगर नहीं होता। उन मरीजों के इलाज के लिए हृदय प्रत्यारोपण व लेफ्ट वेंट्रिकल एसिस्ट डिवाइस (एलवीएडी) विकल्प रह जाता है। हृदय प्रत्यरोपण की सुविधा कई अस्पतालों में उपलब्ध है और यह सबसे ज्यादा बेहतर भी है पर दिक्कत यह है कि अंगदान बहुत होता है। इसलिए बहुत कम मरीजों को हृदय प्रत्यारोपण हो पाता है। एलवीएडी उपकरण कृत्रिम हृदय की तरह काम करता है। इसके इस्तेमाल से 10 साल से अधिक समय तक मरीज जीवन व्यतित कर सकते हैं लेकिन इसका खर्च 70 लाख है। इसलिए कुछ चुनिंदा मरीज ही इसका इस्तेमाल कर पाने में सक्षम होते हैं। उन्होंने कहा कि कई यूरोपियन देशों में सीसीएम थेरेपी का इस्तेमाल हो रहा है। यह एक अत्याधुनिक पेसमेकर की तरह है। इसमें तीन तार हृदय में डालते हैं। एक तार को दायें एट्रियम में और दो तार दायें वेंट्रिकल व सेप्टम में डाला जाता है और इसमें अधिक वोल्ट (7.7 वोल्ट) पर इंपल्स दिया जाता है। इससे हृदय में कैल्सियम के मेटामोलिजम के साथ कार्यक्षमता बढ़ जाती है। इसके आने से मरीजों को इलाज का एक नया विकल्प उपलब्ध होगा। हालांकि इसकी कीमत भी करीब 18 लाख रु पये है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here