सावधान: त्यौहारी सीजन कहीं दु:खदायी न बन जाए, स्वास्थ्य एजेंसी ने जारी की गाइडलान -दशहरा और दीवाली के दिनों में जलने के गंभीर मामले होते हैं -सुझाव, बच्चों और महिलाओं को अतिरिक्त सावधानी बरतें

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ज्ञान प्रकाश नई दिल्ली, दुर्गापूजा, दशहरा और दीवाली जैसे त्यौहार करीब हैं और चेतावनी है कि इस दौरान जलने की घटनाएं ज्यादा होती हैं इसलिए अगले कुछ महीनों तक बच कर रहें। इन दिनों होने वाली दुर्घटनाओं में महिलाओं के जलने से जख्मी होने की आशंका सबसे ज्यादा रहती है। इसकी वजह यह है कि त्यौहारों के दौरान वे भिन्न पकवान बनाने में व्यस्त रहती हैं। कई घरेलू काम भी निपटाने रहते हैं। इसकी जल्दबाजी और तनाव में दुर्घटनाएं होती हैं और महिलाएं जख्मी होती हैं। यही नहीं, दीए जलाना और उन्हें सुरक्षित रखना दूसरी ओर अपने ढीला ढाले कपड़े और इनपर दुपट्टा तथा साड़ी भी महिलाओं को जोखिम में डालते हैं। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर महिलाएं 16 से 35 साल की होती हैं।
इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर बर्न इंजूरीज (आईएसबीआई) के अध्यक्ष एवं सरगंगाराम अस्पताल में प्लास्टिक एंड कॉस्मेटिक सर्जरी के वरिष्ठ कंसल्टेंट डा. राजीव बी आहूजा ने जारी गाइडलाइन में सुझाव दिया है। जलने की बात हो तो निश्चित रूप से रोकथाम करके जलने से बचना जलने के बाद जख्म को ठीक करने से बेहतर है। जलने का उपचार महीनों चलता रह सकता है और यह बहुत तकलीफदेह है। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि हर साल त्यौहारों के मध्य में हम कोई न कोई हादसा आमंत्रित कर लेते हैं जबकि जागरुक रहकर हम खुद को और अपने प्रिय लोगों को जन स्वास्थ्य की इस अहम समस्या का शिकार होने से बचा सकते हैं।
बढ़ रहा है ग्राफ:
भारत में हर साल जलने से जख्मी होने के कारण 7 से 8 लाख लोग अस्पतालों में दाखिल होते हैं। जलने के मामले ज्यादा होने से यह स्वास्थ्य के लिए एक खतरा हो जाता है। सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक कारण मिलकर जलने के मामले का प्रबंध, उसकी रिपोर्टिग और रोकथाम को मुश्किल बनाती है। इनमें आबादी का उच्च घनत्व, निरक्षरता और गरीबी शामिल है जो उच्च जोखिम वाले जख्म से जुड़ा जनसंख्या से से संबधित मुख्य कारण हैं। कई परिवारों में अंधविास, वर्जना, धार्मिंक रिवाज तथा ‘मेडिसिन’ की वैकल्पिक व्यवस्था में आस्था के खिलाफ ऐसा माहौल है जो इसके मैनेजमेंट को मुश्किल बना देता है। इसके अलावा, विकासशील देश जलने से होने वाले जख्म और आपदा से निपटने के लिए आवश्यक सुविधाओं के मामले में भी कमजोर होते हैं। ज्यादातर बर्न केंद्र बड़े शहरों में होते हैं और बड़ी संख्या में जख्म के लिहाज से अपर्याप्त होते हैं। इलाज शुरू होने में अक्सर देर हो जाती है क्योंकि मरीजों को लंबी दूरी तय करनी होती है और परिवहन की सुविधाएं खराब हैं।
ऐसा करें:
खाने पकाने के दौरान या आतिशबाजी से मामूली जलने के घाव का उपचार घर में हो सकता है। ऐसे मामलों में जले हुए हिस्से को तुरंत नल के पानी के नीचे रखा जाना चाहिए और उसपर 15 से 20 मिनट तक पानी गिरने दीजिए। एक बार जब यह ठंडा हो जाए और दर्द कम होने लगे तो मरीज को किसी बर्न स्पेशलिस्ट से संपर्क करना चाहिए।

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