जैसा कि कोविड-19 वैश्विक महामारी भारत में और पूरी दुनिया में स्वास्थ्य और खाद्य प्रणाली पर ख़तरा पैदा कर रही है, 2020 ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट में सरकारों, व्यावसायिक संगठनों और नागरिक समाज से कुपोषण के सभी रूपों को दूर करने की कोशिशें तेज करने के लिए का आह्वान किया गया है।

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भारत चौहान , कोविड-19 ने खाद्य और स्वास्थ्य प्रणाली की कमजोरी को उजागर किया है, जो पहले से कमजोर जनसंख्या को बेतहाशा बुरी तरह प्रभावित कर रही है। जैसा कि असमानताओं और कुपोषण का साया विश्व और भारत पर फैलता जा रहा है, 2020 ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि खाद्य एवं स्वास्थ्य प्रणालियों में नाइंसाफी को दूर कर कुपोषण के सभी रूपों का समाधान करना आज पहले से कहीं ज्यादा ज़रूरी हो गया है।.

रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत कुपोषण से बुरी तरह प्रभावित है, जहाँ देश के भीतर कुपोषण में असमानता की दरें विश्व में सबसे ऊँची दरों में से एक हैं। किन्तु, कमजोर कद-काठी और कम वजन की समस्या से निपटने में कुछ प्रगति हुयी है और सरकार ने सबसे कमजोर लोगों तक पहुँचने के लक्ष्य के साथ कुछ नवोन्मेषी कार्यक्रम लागू किये हैं।

दोहरा बोझ : दुनिया के अधिकाँश देशों को अब एक ही समय में कुपोषण के दोनों पहलुओं का मुकाबला करने के लिए सुसज्जित होना होगा।

भारत ने बच्चों और किशोरों में वजन में कमी की दर को कम करने में कुछ सफलता प्राप्त की थी। 2000 से 2016 के बीच यह दर लड़कों के मामले में 66.0% से घटकर 58.1% पर और लड़कियों के मामले में 54.2% से घटकर 50.1% पर आ गयी थी। पर, यह अभी भी एशियाई क्षेत्र में लड़कों के लिए 35.6% और लड़कियों के लिए 31.8/% की तुलना में काफी ऊपर है।

इसके अतिरिक्त, 5 वर्ष से कम आयु के 37.9% बच्चे का शारीरिक विकास अवरुद्ध है और 20.8% कमजोर है, जबकि एशिया में यह अनुपात क्रमशः 22.7% और 9.4% है।

आहार-सम्बंधित रोग की समस्या लगातार बनी हुयी हैं, जैसा कि प्रजनन की उम्र की हर दो में एक स्त्री एनीमिया की शिकार है। दूसरी ओर अधिक वजन और मोटापा की दर बढ़ती जा रही है जिससे लगभग हर पांच में एक वयस्क पीड़ित हैं। इनमें स्त्रियों का अनुपात 21.6% और पुरुषों का 17.8% है।

विश्व स्तर पर विभिन्न देश पोषण के संकट का सामना करने के लिए अक्सर तैयार नहीं रहते हैं। समस्या के पैमाने और प्रकृति और इसके लिए वित्तीय प्रावधानों में काफी अंतर रहता है : पोषण के लिए घरेलू संसाधनों में वृद्धि बहुत मामूली ही रही है और वित्तीय आवंटन में मोटापा एवं ज्‍यादा वजन को आम तौर पर उपेक्षित रखा गया है।

नए परिप्रेक्ष्य : संसाधनों को सबसे अधिक प्रभावित समुदायों और लोगों तक पहुंचाना सही और सबसे समझदारी-भरा कदम होगा

वैश्विक और राष्ट्रीय स्वरुप में देशों और जनसंख्याओं के भीतर महत्वपूर्ण असमानताओं को छिपाया जाता है, जिससे कमजोर समूह सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। रिपोर्ट में कुपोषण के स्तरों और आबादी के अभिलक्षणों, जैसे कि स्थान, आयु, लिंग, शिक्षा और संपत्ति के बीच स्पष्ट सम्बन्ध पाया गया है जबकि संघर्ष और कमजोरी के अन्य रूपों के कारण समस्या और भी बढ़ जाती है।

विभिन समुदायों के आर-पार और उप-राष्ट्रीय स्तर पर अंतर चौंकाने वाले हैं। भारत कुपोषण में देश के भीतर सबसे बड़ी असमानताओं वाले देशों में से एक है जहाँ उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में शारीरिक विकास अवरुद्धता का स्तर 40% से भी ऊपर है। न्यूनतम आय समूह में अलग-अलग व्यक्तियों में शारीरिक विकास अवरुद्धता उच्चतम आय समूह के स्तर से दोगुने से भी अधिक है, जिनका अनुपात क्रमशः 50.7% और 22.0% है। इसके अतिरिक्त, शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में शारीरिक विकास अवरुद्धता की व्यापकता 10.1% ज्यादा है।

यही हाल अतिभार और मोटापा का भी है, जहाँ वयस्क महिलाओं में मोटापे के मामले पुरुषों से करीब दोगुना ज्‍यादा है (5.1% और 2.7%, क्रमशः) ।

भारत में असमानता को हल करने के लिए कुछ सकारात्मक कदम उठाये गए हैं। उदाहरण के लिए, आकांक्षी जिला परिवर्तन कार्यक्रम (ट्रांसफॉर्मेशन ऐस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्‍ट्स प्रोग्राम) ने अल्प विकास के इलाकों वाले जिलों में स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, मूलभूत सुविधा, कृषि और जल संसाधनों में सेवा में सुधार पर नीतिगत ध्यान केन्द्रित करते हुए भारत सरकार के प्रयासों का समर्थन किया है।

ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट के ऑनलाइन शुभारम्भ पर नीति आयोग (नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया) के विशेष सलाहकार, आलोक कुमार का कहना है कि, “खाद्य सुलभता का अभाव कुपोषण का एकमात्र निर्धारक है। इसके हल के लिए हमें अपेंक मोर्चों पर कारवाई करनी होगी : सभी सामाजिक निर्धारकों पर काम करते हुए और शासन संचालन तथा सुपुर्दगी प्रणालियों को सुदृढ़ करते हुए समानता को बढ़ावा देना होगा। ऐसे समय में जब कोविड-19 महामारी ने चुनौतियों को कई गुणा बढ़ा दिया है, हमें अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए ज्यादा बड़े संकल्प और प्रतिबद्धता की ज़रुरत है।”

आगे और कदम उठाने की ज़रुरत है. वैश्विक महामारी के असर के कारण कमजोर आबादी के लिए कुपोषण से खुद को बचाना और ज्‍यादा कठिन होगा। कुपोषण हमारे प्रतिरोधी तंत्र को प्रभावित करता है, हम संक्रमण के प्रति ज्यादा ग्रहणशील बन जाते हैं, और इस तरह वैश्विक महामारी के सामाजिक-आर्थिक प्रभाव से दुनिया भर में कुपोषण बढ़ेगा।

खाद्य प्रणाली में अंतर : अपर्याप्त भोजन किसी का व्यक्तिगत खाद्य विकल्प नहीं हो सकता।

रिपोर्ट में खाद्य प्रणालियों में बदलाव की मांग की गई है। मौजूदा कृषि प्रणालियाँ अभी भी चावल, गेहूं और मक्के जैसे प्रधान अनाजों पर केन्द्रित हैं। जबकि इसके बदले फलों, बादामों और सज्ब्जियों जैसे अधिक विविध और स्वास्थ्यकर खाद्यों की व्यापक रेंज का उत्पादन होना चाहिए।

प्रधान अनाजों की तुलना में विश्व के अनेक भागों में ताजा और खराब होने वाले खाद्य पदार्थ कम सुलभ और महँगे हैं। वहीं, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, विशेषकर अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं, सस्ते हैं और इनकी जबरदस्त मार्केटिंग होती है, भारत सहित विश्व के अनेक भागों में इनकी बिक्री ज्यादा है और तेजी से बढ़ रही है।[1] इन बदलावों के लिए नीति और नियोजन संसाधनों की ज़रुरत है ताकि वांछित पोषण परिणामों को बढ़ावा मिल सके।

पूरे विश्व में समाधान मिलने आरम्भ हो गए हैं। इनमें, स्वास्थ्यकर खाद्य उत्पादों के लिए अधिक सार्वजनिक निवेश, ताजा खाद्य पदार्थ डिलीवरी कार्यक्रमों के लिए लघु आपूर्ति श्रृंखला, राजकोषीय साधनों का प्रयोग, बेकार खाद्य पदार्थों (जंक फ़ूड) के विज्ञापन पर प्रतिबन्ध, खाद्य पदार्थ का दोबारा संरूपण, या उपभोक्ताओं को जानकारी देने और उद्योगगत व्यवहार को प्रभावित करने के लिए फ्रंट-ऑफ़-पैक-लेबलिंग (एफओपीएल) सम्मिलित हैं. हालांकि, अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

रिपोर्ट के को-चेयर और टाटा कॉर्नेल कृषि एवं पोषण पहल के लिए पोषण पर विशेष सलाहकार, वेंकटेश मन्नार ने कहा कि, “ऐसे वक्त में जब कोविड-19 ने हमारी खाद्य प्रणाली में अंतर को और अधिक स्पष्ट कर दिया है, हमारे पास अब एक अनोखा अवसर मौजूद है जिसमें हम उन अंतरों को दूर करने और स्वास्थ्यकर तथा संवहनीय रूप से उत्पादित खाद्य पदार्थों को सभी के लिए सर्वाधिक सुलभ, सस्ता और वांछित बनाने के लिए तालमेल के साथ काम कर सकते हैं.”

यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज : पोषण देखभाल को एक बुनियादी, जीवन-रक्षक और किफायती स्वास्थ्य सेवा के रूप में सर्वजन के लिए उपलब्ध बनाने का एक अवसर।

कुपोषण अपने सभी रूपों में कमजोर स्वास्थ्य और मृत्यु का प्रमुख कारण बन गया है, और आहार-संबंधी गंभीर रोगों में तेज वृद्धि से स्वास्थ्य प्रणालियों पर भारी दबाव पड़ रहा है। लेकिन इस आंकलन के बावजूद, पोषण संबंधी कारवाई के लिए स्वास्थ्य के राष्ट्रीय बजट का बहुत बहुत सूक्ष्म हिस्सा दिया जाता है, हालांकि वे अत्यंत किफायती और यहाँ तक कि बचत करने वाले समाधान हो सकते हैं।

राज्यों के भीतर सामाजिक एवं आर्थिक विकास संकेतकों के सन्दर्भ में भारी अंतर को स्वीकार करते हुए भारत ने 2018 में ट्रांसफॉर्मेशन ऐस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्‍ट्स प्रोग्राम आरम्भ किया। यह 28 राज्यों में 115 ‘आकांक्षी जिलों’ में असमानता, सामाजिक अन्याय और बहिष्कार के समाधार की दिशा में नीतिगत ध्यान केन्द्रित करते हुए समान पोषण सेवाओं के सफल एकीकरण और सुपुर्दगी का एक उदाहरण है। इस कार्यक्रम में अविकसित इलाकों वाले जिलों में स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, बुनियादी सुविधाओं, कृषि और जल संसाधान के क्षेत्र में सेवाओं का प्रदर्शन सुधारने के संगठित प्रयास सम्मिलित हैं।

रिपोर्ट के को-चेयर और टफ्ट्स यूनिवर्सिटी के फ्रिडमैन स्कूल ऑफ़ न्यूट्रीशन साइंस ऐंड पालिसी में रिसर्च एसोसिएट प्रोफेसर, रेनाटा मिचा ने कहा कि : “देशों की आबादी को महामारियों से बचाने, हमारी स्वास्थ्य प्रणालियों पर बोझ कम करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्याप्ति मुहैया करने और अंततः जीवन की रक्षा करने के लिए उत्तम पोषण एक आवश्यक सुरक्षा रणनीति है। 2020 ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि कुपोषण को दूर करना हमारी स्वास्थ्य सम्बन्धी विश्वव्यापी प्रतिक्रिया का केंद्र बिंदु होना चाहिए.”

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