वि श्रवण दिवस पर बोले एम्स के एक्सर्टस -श्रवण अक्षमता एकमात्र बीमारी जिसका शत प्रतिशत इलाज संभव

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भारत चौहान नई दिल्ली , जन्मजात शिशु से लेकर बड़े उम्रदराज लोगों में पायी जाने वाली श्रवण अक्षमता एकमात्र ऐसी बीमारी हैं जिसका अगर समय रहते पता लग जाये तो इलाज शत प्रतिशत संभव है। वि श्रवण दिवस के मौके पर सोमवार को यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के कान नाक गला (ईएनटी) विभाग की ओर से एक समारोह का आयोजन किया गया। इस मौके पर ईएनटी विभाग के प्रमुख डा. अशोक ठक्कर ने यह जानकारी दी। सनद् रहे कि हर वर्ष 3 मार्च को वि श्रवण दिवस जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन पूरे वि में सुनने के महत्व पर विभिन्न संगठनों द्वारा जागरूकता फै लायी जाती है। इस बार का थीम है हियरिंग फॉर लाइफ।
कॉक्लियर इम्प्लांट:
डा. ठक्कर के कॉक्लियर इम्प्लांट के जरिये श्रवण क्षमता खो चुके लोगों का सफल इलाज किया जाता है। इस ऑपरेशन के तहत कान के अंदर एक डिवाइस लगाई जाती है जो बाहरी कान के पास लगे ट्रांसमीटर से बाहरी आवाज को चुंबकीय तरंगों में बदलकर कॉक्लियर तक पहुंचाती है। जिससे मरीज को सुनने में आसानी होती है।
ईएनटी विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डा. कपिल सिक्का ने कहा कियह अक्षमता कु छ जन्मजात शिशु में भी होती है। इससे पहले अभिवावक पता लगाए, या बच्चा बताने में देरी करे उससे पहले ही इस कु छ ऑपरेशन की मदद से इसे ठीक किया जा सकता है। डा. सिक्का ने बताया कि पहले यह अक्षमता कान बहने की वजह से मानी जाती थी लेकिन आज की बदलती जीवनशैली, ज्यादा तेज आवाज में संगीत सुनने और इयरफोन के अत्यधिक प्रयोग और समय के साथ बढ़ता एक्सपोर इसके प्रमुख कारण हैं।
जागरुकता की है दरकार:
बहुत सारे लोगों को श्रवण संबंधी उपकरण लगाने में हिचक महसूस होती है उसका क्या उपाय है, इस पर डा. सिक्का ने बताया कि ऐसे लोगों को समय के साथ इसके लिये प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। ताकि वे इसउपकरण के लिये तैयार हो सके। इस अक्षमता से संबंधित जानकारी जुटाने के लिये डा. ठक्कर ने भारतीय आयरुविज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के साथ मिलकर देश के छह हिस्सों में 90 हजार लोगों पर शोध किया है।
कम सुनने की समस्या बढ़ी:
वि स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 5त्न आबादी में आंशिक या पूर्ण रूप से सुनने की समस्या है। उधर, इंडियन आप्थलामालोजिकल सोसायटी की ओर से आयाजित श्रवण यंत्र की सक्रियता और नेत्र विकृतियों गोष्ठी की अध्यक्षता डा. राहिल चौधरी ने की। इस अवसर पर आई7 के निदेशक डा. संजय चौधरी ने कहा कि कान का संबंध आंखों की रोशनी से होता है। नाक, कान, गला के साथ ही आंखों की रोशनी की जांच स्क्रीनिंग हर छह माह के दौरान कराना जरूरी है।

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