एम्स में बंदरो और कटखने कुत्तो से परेशान डॉक्टर्स ने लगायी मेनका गाँधी से गुहार चार माह में ये जानवर 234 लोगो को बना चुके हैं अपना शिकार

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भारत चौहान नई दिल्ली आवारा कटखने कुत्तों और बंदरों से राजधानीवासी ही नहीं अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में उपचार कराने आने वाले मरीज, रिश्तेदार, डाक्टर व पैरामेडिकल स्टाफ भी खासे परेशान है। इसके लिए केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी को जिम्मेदार ठहराया गया है। एम्स में डाक्टरों के समूह ने सामूहिक स्वहस्ताक्षर युक्त एक पत्र लिका है। मंगलवार को मेनका गांधी को लिखे पत्र में डाक्टरों ने कुत्तों और बंदरों की वजह से हुई घटनाओं का जिक्र किया है। सख्त नियमों की वजह से इनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिए जाने का मामला भी उठाया है। साल भर में 234 से अधिक को कटखने बंदरों ने अपना शिकार बना चुके हैं। वे वार्ड्स में बेधड़क प्रवेश करते हैं दवाएं तितर वितर करते हैं, कपड़े फेंक देते हैं। डराने पर वे काट लेते हैं। ये मालमे इस वर्ष के हैं। बीते साल यह संख्या 560 से अधिक दर्ज की गई है। वे वे मामले हैं जिनका इलाज इमरजेंसी में किया गया।
एम्स रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) के अध्यक्ष डा. हरजीत सिंह ने भेजे पत्र की प्रति दिखाया और कहा कि पिछले कुछ समय से एम्स परिसर में कुत्तों और बंदरों का आतंक बढ़ा है। इनकी वजह से डाक्टर, मरीज, तिमारदार और अन्य स्टाफ हर कोई परेशान है। बीते दिनों कई मरीज और उनके तिमारदार बंदरों के हमले की वजह से गंभीर रु प से घायल भी हुए हैं। बावजूद इनके खिलाफ कार्रवाई करने से एम्स प्रबंधन घबरा रहा है। डा. हरजीत के अनुसार एम्स में हर दिन तीन से चार और महीने में तकरीबन 100 लोग इन जानवरों के शिकार हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी से उन्होंने सलाह मांगी है कि एम्स परिसर को किस तरह इन जानवरों से सुरक्षित किया जाए। उन्होंने यह भी लिखा है कि एम्स में इलाज कराने के लिए मरीज पहुंचता है। ऐसे में यहां आकर जानवर का शिकार होने के बाद उसे एंटीरैबीज लेना पड़ता है। अधिकांश सरकारी अस्पतालों में मरीजों का पहले से ज्यादा दबाव रहता है। एम्स में क्षमता से कई गुना रोगियों का दबाव साल के 365 दिन रहता है। इस स्थिति में अवारा जानवरों की वजह से मरीजों की परेशानी कई गुना ज्यादा बढ़ रही है। डॉक्टरों ने तंज कसते हुए ये भी लिखा है कि जानवरों से बचने के लिए एम्स को उठाकर कहीं दूसरे स्थान पर नहीं रखा जा सकता। उधर, दक्षिण दिल्ली नगर निगम के स्वास्थ्य निदेशक डा. डीके सेठ ने कहा कि रोकथाम के लिए कानून में बदलाव जरूरी है। हम आवारा कुत्तों को पकड़ते हैं उन्हें दूर छोड़ते हैं फिर वे आ जाते हैं। यही हाल है बंदरों का। बता दें कि यह मामला नगर निगम और विधानसभा के साथ ही लोकसभा में उठ चुका है। लेकिन समस्या का निदान अब तक नहीं हो सकी है।

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