आखिरकार 17 दिन बाद जिंदगी की जंग हार गया फरहान -वेंटिलेटर न मिलने पर परिजनों ने आठ दिन ताक अंबू बैग दबाकर ऑक्सीजन दी थी

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भारत चौहान नई दिल्ली, लोकनायक अस्पताल में 17 दिनों से जिंदगी की जंग लड़ रहे फरहान ने रविवार तड़के करीब 6 बजकर 2 मिनट पर आखिरकार चिकित्सीय संसाधनों की कमी से जिंदगी से हारा गया। वह दिमागी पण्राली को प्रभावित करने वाली लेइग्स नामक मानिसक बीमारी से जूझ रहा था। फरहान तब चर्चा में आया था जब 24 जनवरी को उसे अस्पताल में भर्ती कराने के 8 दिनों तक वेंटिलेटर पाने की बाट जोहता रहा। पिता अशफाक और अन्य परिजन इस दौरान राउंड द क्लाक अंबू बैग दवाकर उसे कृत्रिज्ञ ऑक्सीजन देते रहे। इसके बाद हाकोर्ट के आदेश पर अस्पताल ने उसे वेंटिलेटर दिया था।
परिवार सदमें में:
रविवार सुबह छह बजे उन्हें बेटे के दम तोड़ने की खबर मिली। फरहान का पूरा परिवार सदमे में हैं। फरहान की जान बचाने के लिए उसके परिजनों ने लगातार आठ दिन तक हाथ से अंबू बैग दबाया था। लगातार अंबू बैग दबाने से उसके पिता और चाचा कि तबीयत भी खराब हो गई थी।
लापरवाही:
फरहान को 24 जनवरी को लोकनायक अस्पताल लाया गया था। पिता के मुताबिक तब डॉक्टरों ने उन्हें उनके बेटे के ब्रेन डेड होने की जानकारी दी थी लेकिन पिता का कहना है कि बच्चे के शरीर में हरकतें हो रही थीं। इसके बाद डॉक्टरों ने उन्हें अंबू बैग दे दिया। इसे लगातार दबाते हुए बच्चे को 8 दिन तक ऑक्सीजन दी गई थी। पिता ने अधिवक्ता अशोक अग्रवाल से मदद मांगी तो मामला हार्कोर्ट पहुंचा। इसके बाद हाईकोर्ट ने फरहान को तुरंत वेंटिलेटर देने का आदेश दिया। आदेश के 24 घंटे बाद भी अस्पताल ने फरहान को वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं कराया था। 31 जनवरी को उसे किसी और अस्पताल में भेजने का दबाव बनाया गया लेकिन मामला बढ़ता देख एक फरवरी को अस्पताल ने उसे आईसीयू में वेंटिलेटर उपलब्ध करा दिया।
अस्पताल ने वेंटिलेटर की कमी का हवाला दिया था:
लोकनायक अस्पताल के एमएस डा. किशोर के अनुसार उनके पास बच्चों के लिए सिर्फ 5 वेंटिलेटर बेड उपलब्ध हैं। हर बेड पर दो बच्चों को जगह दी गई लेकिन इसकी जरूरत वाले मरीजों की संख्या अधिक है ऐसे में हम सबको वेंटिलेटर उपलब्ध कराने में असमर्थ हैं।
डिस्पोजेबल वेंटिलेटर दिलाएगा अंबू बैग से छुटकारा:
एम्स अस्पताल में डिस्पोजेबल वेंटिलेटर की व्यवस्था है। डिस्पोजेबल वेंटिलेटर केवल एक ही मरीज के लिए इस्तेमाल में आता है। एक बार मरीज को ये वेंटिलेटर लगने के बाद इसे नष्ट कर दिया जाता है। एक मरीज के लिए करीब छह माह तक इस्तेमाल में आने वाले इस वेंटिलेटर की कीमत बाजार में 20 हजार रु पये तक है। एम्स के बाद अब दिल्ली सरकार के गुरु तेगबहादुर अस्पताल (जीटीबी) में मरीजों के लिए डिस्पोजेबल वेंटिलेटर की सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगी। अस्पताल ने फिलहाल 50 वेंटिलेटर की व्यवस्था की है। डिस्पोजेबल वेंटिलेटर की मदद से मरीज को अंबू बैग से छुटकारा मिल सकेगा।

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